Sunday, 8 June 2014

Boudh dharm ka itihas Boudh Gaya,

गौतम बुद्ध ka जन्म ५६३ ईस्वी पूर्व aur मृत्यु ४८३ ईस्वी पूर्व men huyi thi.  विश्व के प्राचीनतम धर्मों में से एक  बौद्ध धर्म है  जिसके परिवर्तक गौतम बुद्ध थे ।  शाक्य नरेश शुद्धोधन के घर जन्म लेने वाले सिद्धार्थ ka विवाह के बाद  नवजात पुत्र  राहुल और अपनी पत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को मरण और दुखों से मुक्ती दिलाने के मार्ग की तलाश में अर्धरात्रि में राजपाठ त्याग kar जंगल की ओर chale gaye दिए ।  वर्षों की कठोर साधना और tapasya के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधी वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान ki प्राप्ति हुई और वे  सिद्धार्थ से बुद्ध बन गए। boudh dharm ke logon ke liye boudh gaya sabse bada tirth sthan mana jata hai.
बुद्ध ka janm लुम्बिनी वन नेपाल के तराई क्षेत्र में स्थित कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से आठ  मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक gaun men huva था। कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी को उनके मायके  देवदह जाते समय  रास्ते में प्रसव पीड़ा होने से दर्द से करIहि  और वहीं उन्होंने एक शिशु  को जन्म दिया। बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया। गौतम गोत्र में जन्म होने  के कारण वे गौतम भी कहलाए। शाक्यों के राजा शुद्धोधन उनके पिता थे। परंपरागत कथा के अनुसार, सिद्धार्थ की माता जी मायादेवी जो कोली वन्श की थी और  उनके जन्म के ठीक सात दिन बाद उनका निधन हो गया था। उनका पालन पोषण शुद्दोधन की दूसरी रानी और उनकी मौसी महाप्रजावती ने किया शिशु का नाम सिद्धार्थ rakha गया, सिद्धार्थ ka  अर्थ हैा "वह जिसका जन्म  सिद्धी प्राप्ति के लिए हुआ हो" सिद्धार्थ के जन्म समारोह के दौरान, एक  साधु द्रष्टा आसित ने अपने पहाड़ के निवास से bhavishyavani की- की यह बच्चा या तो एक महान राजा या महान  पवित्र पथ प्रदर्शक बनेगा। शुद्दोधन ने जन्म समारोह के पांचवें दिन एक नामकरण समारोह आयोजित किया और पूरे विश्व से  आठ ब्राह्मण विद्वानों को भविष्य पढ़ने के लिए आमंत्रण दिया सभी ने एक ही जैसी  दोहरी भविष्यवाणी की, कि  बच्चा या तो एक महान राजा या एक महान पवित्र पथ प्रदर्शक बनेगा । aage chal kar ayisa hin huva सिद्धार्थ vivah ke bad apni patni aur bachcha ko chhor kar jangal men nikal gaye, aur boudhgaya men jakar unhen gyan mila fir ve pure duniya ko gyan bantne lage Ahinsha ke bare men unhone puri duniya ko bataya jo aaj bhi prasangik ahi.

दक्षिण मध्य नेपाल में स्थित लुंबिनी में महाराज अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व बुद्ध के जन्म की स्मृति में एक स्तम्भ बनवाया बुद्ध का जन्मदिवस बड़े ही धूम धाम और श्रद्धा  से आज भी puri duniya men मनाया जाता है। सुद्धार्थ का अंतर्मन  बचपन  से ही करुणा और दया का स्रोत था। इसका परिचय उनके आरंभिक जीवन की अनेक घटनाओं से मIलूंम पड़ता है घुड़दौड़ में जब घोड़े दौड़ते और उनके मुँह से झाग निकलने लगता तो सिद्धार्थ उन्हें थका जानकर वहीं रोक देते  और जीती हुई बाजी हार जाते खेल में भी अक्सर सिद्धार्थ को खुद ही  हार जाना पसंद था क्योंकि किसी का हराना और किसी का दुःखी होना उनसे देखा नहीं जाता था। सिद्धार्थ ने चचेरे भाई देवदत्त द्वारा तीर से घायल हुए हंस की सुरक्षा की और उसके प्राणों की रक्षा भी की। ayise hi hajaro updesh hamen budham sharnam gachchami men milte hai 

No comments:

Post a Comment